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Pasteurization kya hai दूध का पाश्चराइजेशन

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पाश्चराइजेशन (Pasteurization) एक हीटिंग प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया का उपयोग दूध जैसे खाद्य उत्पादों में से हानिकारक बैक्टीरिया और सूक्ष्मजीवों को नष्ट करने या कम करने के लिए किया जाता है। इसका उद्देश्य खाद्य सुरक्षा में सुधार करना, स्वाद और पोषण मूल्य को संरक्षित रखना, और उत्पाद की शेल्फ लाइफ (Shelf Life) को बढ़ाना है। पाश्चस्चरीकरण खाद्य उत्पाद को स्टेरिलाइज़ (Sterilize) नहीं करता है, लेकिन हानिकारक बैक्टीरिया और सूक्ष्मजीवों की संख्या को काफी कम (Reduces) कर देता है। इस आर्टिकल में हम पाश्चराइजेशन की खोज, व्याख्या, प्रक्रिया और Pasteurization kya hai इसके बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे

पाश्चराइजेशन की खोज Discovery of Pasteurization

पाश्चस्चरीकरण की प्रक्रिया को सबसे पहले इस्तेमाल करने वाले वैज्ञानिक का नाम है लुईस पाश्चर (Louis Pasteur)लुईस पाश्चर (Louis Pasteur) एक फ्रांसीसी माइक्रोबायोलॉजिस्ट थे , जीन्होंने 19वीं सदी के मध्य में पाश्चराइजेशन की खोज की। उन्होंने वाइन और बीयर को निर्दिष्ट तापमान पर गर्म करके वाइन और बीयर के स्वाद में होनेवाले बदलाव को रोकने का सिद्धांत विकसित किया। यह सिद्धांत दूध पर भी लागू हो सका और पाश्चस्चरीकरण आज खाद्य उद्योग में व्यापकता से प्रयोग होने वाली प्रक्रिया है । यह प्रक्रिया हानिकारक बैक्टीरिया को मार देती है लेकिन उत्पाद के स्वाद या गुणवत्ता पर कोई असर नहीं पड़ता।

पाश्चराइजेशन कि व्याख्या Pasteurization definition kya hai in hindi

Pasteurization पाश्चराइजेशन एक नम ऊष्मा स्टेरिलाइजेशन (moist heat sterilization) प्रक्रिया है जो दूध और अन्य खाद्य सामग्री को खान-पान के योग्य बनाने के लिए किया जाता है। इसमें खाद्य (दुध) को एक निश्चित तापमान और निश्चित समय तक गर्म किया जाता है ताकि इसमें मौजूद हानिकारक जीवाणुओं को मार दिया जा सके। इस प्रक्रिया से खाद्य जनित बीमारीयों से (foodborne illnesses ) बीमार पड़ने का खतरा कम हो जाता है। यह प्रक्रिया दूध और अन्य खाद्य उत्पादों को उनके स्वाद और पोषण मूल्य में बिना बदलाव के साथ लंबे समय तक ताजा रखने में मद्द करता है ।

पाश्चराइजेशन प्रक्रिया के प्रकार Different pasteurization methods


खाद्य उद्योग में उपयोग होने वाले पाश्चस्चरीकरण प्रक्रिया के विभिन्न तरीके हैं। यहां उनके नाम और कार्य का वर्णन है:

Pasteurization-kya-hai

उच्च तापमान पर कम समय- High Temperature Short Time (HTST)

High Temperature Short Time (HTST) पाश्चराइजेशन विधि को दूध और अन्य दूध उत्पादों के लिए आम तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। इसमें दूध को 161°F (71.7° C) तापमान पर 15 सेकंड के लिए गर्म करके हानिकारक बैक्टीरिया और सूक्ष्मजीवों को मार देना शामिल होता है।

अत्यधिक तापमान पर कम समय- Ultra-High Temperature (UHT)

Ultra-High Temperature (UHT) पाश्चराइजेशन विधि में दूध को बहुत अधिक तापमान (लगभग 280°F या 138°C) तक केवल कुछ ही सेकंड के लिए गर्म किया जाता है ताकि दूध को लंबे समय तक शेल्फ लाइफ प्राप्त हो सके। यह प्रक्रिया आमतौर पर कमरे के तापमान (room temperature) पर स्टोर किए जाने वाले दूध के लिए उपयोग होती है। UHT पाश्चराइजेशन कि विधि यूरोप और दुनिया के अन्य हिस्सों में आमतौर पर इस्तेमाल होती है।

कम तापमान में धारण करना – Low Temperature Holding (LTH)

Low Temperature Holding (LTH) पाश्चराइजेशन एक कम प्रचलित विधि है जिसमें दूध को एक कम तापमान (145°F या 62.8°C) पर लंबे समय तक (30 मिनट) धारण किया जाता है ताकि HTST के समान स्तर पर की बैक्टीरियल कमी हासिल की जा सके। LTH पाश्चराइजेशन कि विधि आमतौर पर कुछ विशेष प्रोडक्ट्स, जैसे बकरी का दूध और कुछ सॉफ्ट पनीर, के लिए उपयोग होती है।

पाश्चराइजेशन के फायदे :

  1. खाद्य सुरक्षा में सुधार: पाश्चराइजेशन हानिकारक बैक्टीरिया के कारण होने वाली खाद्यसंबंधी बीमारियों के जोखिम को कम करके खाद्य उत्पादों को सुरक्षित बनाता है। जिससे उन्हें सुरक्षित रूप से सेवन किया जा सकता है।
  2. स्वाद और पोषणीय मूल्य का संरक्षण: इस प्रक्रिया से खाद्य उत्पाद का स्वाद या पोषणीय मूल्य परिवर्तित नहीं होता है, जिससे उसकी गुणवत्ता और प्रभाव संभवतः बनी रहती है।
  3. दीर्घकालिक शेल्फ लाइफ (Shelf Life): पाश्चस्चरीकरण खाद्य उत्पाद की शेल्फ लाइफ (Shelf Life) बढ़ाने में मदद कर सकता है, जिससे उत्पाद के नुकसान में कमी होती है और उत्पाद अधिक समय तक उपलब्ध हो सकता है।
  4. पहुंच/ उपलब्धता में वृद्धि: पाश्चस्चरीकरण का इस्तेमाल करके खाद्य उत्पादों का बडे स्तर पर उत्पादन (large scale production)कर सकते है, जिससे उनकी उपलब्धता और पहुंच उपभोगकर्ताओं के लिए बढ़ सकती है।
  5. स्वास्थ्य देखभाल खर्च में कमी: पाश्चस्चरीकरण द्वारा खाद्यसंबंधी बीमारियों की घटना कम करके, इसके उपचार से संबंधित स्वास्थ्य देखभाल खर्चों में कमी आ सकती है।

इस प्रकार पाश्चस्चरीकरण एक प्रभावी (effective) और व्यापक (widely used) प्रोसेस है जो खाद्य सुरक्षा, गुणवत्ता और पहुंच में महत्वपूर्ण लाभ प्रदान करती है।

पाश्चराइजेशन के नुकसान :

  1. पोषणीय मूल्य में कमी: पाश्चस्चरीकरण के प्रक्रिया से कुछ पोषक तत्वों में थोड़ा सा क्षीणन (slight loss) हो सकता है, विशेष रूप से विटामिन बी और विटामिन सी।
  2. स्वाद में परिवर्तन: कभी-कभी, पेस्चरीकरण किसी विशेष खाद्य के स्वाद (taste) और संरचना (texture) पर प्रभाव डाल सकती है, हालांकि यह आमतौर पर न्यूनतम होता है।
  3. लागत (Cost): इस प्रक्रिया के लिए विशेषज्ञ उपकरण और ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जो खाद्य उत्पादों के उत्पादन की लागत में इजाफा कर सकती है।
  4. पर्यावरणीय प्रभाव (Environmental impact) : पाश्चराइजेशन प्रक्रिया में ऊर्जा और पानी का उपयोग पर्यावरण पर प्रभाव डाल सकता है, खासकर अगर उपकरण का संरक्षण या अद्यतन (update) योग्य रूप से नहीं किया जाता है।
  5. सभी पैथोजनों के प्रति अपर्याप्त सुरक्षा: पाश्चस्चरीकरण कई हानिकारक बैक्टीरिया और सूक्ष्मजीवों के खिलाफ प्रभावी होता है, हालांकि यह सभी पैथोजनों, जैसे कुछ वाइरस या बैक्टीरियल स्पोर्स के खिलाफ पूरी तरह से प्रभावी नहीं हो सकता है।

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